- मेष की आकृति छाग अर्थात् बकरे के समान होती है।
- वृष बैल के आकार का होता है।
- मिथुन की आकृति युग्मित पुरूष तथा स्त्री जैसा है। स्त्री के हाथ में वीणा और पुरूष के हाथ में गदा है।
- कर्क का स्वरूप कछुए की तरह है।
- सिंह की आकृति शेर की तरह है।
- कन्या का स्वरूप ऐसा है कि नाव में एक कन्या है और उसके हाथ में दीपक है।
- तुला का स्वरूप बाज़ार में तराजू लेकर कुछ तौलते हुए पुरूष जैसा है।
- वृश्चिक की आकृति बिच्छू के सदृश है।
- धनु का स्वरूप हाथ में धनुष लिए हुए ऐसे मनुष्य जैसा है जिसके कमर से नीचे का भाग घोड़े जैसा है।
- मकर का मुँह(गले से ऊपर का भाग) मृग की तरह और शेष शरीर मकर (मगरमच्छ) की तरह है।
- कुम्भ की आकृति हाथ में खाली घड़ा लिए मनुष्य जैसी है।
- मीन दो मछलियों के जोड़े के रूप में है जिसमें दोनों मछलियों की पूँछें एक दूसरे से उलटी दिशा में हैं अर्थात् एक के मुख पर दूसरे का पूँछ है।
सोमवार, 9 जून 2008
राशियों का स्वरूप
सोमवार, 26 मई 2008
नक्षत्र
जिस भचक्र में बारह राशियां स्थित हैं उसी में २७ नक्षत्र भी स्थित होते हैं। पहला नक्षत्र अश्विनी है जो मेष राशि के आरंभ में होती है और अन्तिम नक्षत्र रेवती है जो मीन राशि के अंत में स्थित है। प्रत्येक नक्षत्र का विस्तार १३ अंश २० कला होता है। प्रत्येक नक्षत्र में चार चरण या पाद होते हैं। नौ चरणों अर्थात् सवा दो (२ १/४) नक्षत्रों से एक राशि बनती है। प्रत्येक चरण (१/४ भाग) का विस्तार ३ अंश २० कला होता है। राशियों और नक्षत्रों का आरंभ मेष राशि के शून्य अंश से होता है। नक्षत्रों के नाम तथा उनके स्वामी निम्नलिखित हैं :-
- नक्षत्र-स्वामी
- अश्विनी-केतु
- भरणी-शुक्र
- कृत्तिका-सूर्य
- रोहिणी-चन्द्र
- मृगशिरा-मंगल
- आर्द्रा-राहु
- पुनर्वसु-बृहस्पति
- पुष्य-शनि
- आश्लेषा-बुध
- मघा-केतु
- पूर्वाफाल्गुनी-शुक्र
- उत्तराफाल्गुनी-सूर्य
- हस्त-चन्द्र
- चित्रा-मंगल
- स्वाती-राहु
- विशाखा-बृहस्पति
- अनुराधा-शनि
- ज्येष्ठा-बुध
- मूल-केतु
- पूर्वाषाढा-शुक्र
- उत्तराषाढा-सूर्य
- श्रवण- चन्द्र
- घनिष्ठा- मंगल
- शतभिषा-राहु
- पूर्वाभाद्रपद-बृहस्पति
- उत्तराभाद्रपद-शनि
- रेवती-बुध
गोपाल
बुधवार, 21 मई 2008
ग्रहों की औसत भ्रमण गति:मार्गी और वक्री ग्रह
- सूर्य - ३० दिन (एक अंश प्रतिदिन)
- चंद्र - २ दिन ६ घंटे
- मंगल - ४५ दिन
- बुध - २७ दिन
- गुरु - १ वर्ष
- शनि - २ १/२ वर्ष (३० मास)
- राहु - १८ मास
- केतु - १८ मास
सूर्य की रश्मियों के समीप आ जाने पर ग्रह अपनी स्वाभाविक गति को छोड़कर तीव्र गति से या अपेक्षाकृत धीमी गति से भ्रमण करने लगते हैं। ऐसा बुध के साथ अक्सर होता है। ग्रहों का इस प्रकार तीव्र गति से घूमने लगना उनका अतिचारी हो जाना कहलाता है।
यहाँ यह भी उल्लेखनीय है कि सूर्य और चंद्र सदैव मार्गी गति से भ्रमण करते हैं अर्थात सदैव आगे की ओर अर्थात् मेष, वृष, मिथुन इत्यादि क्रम से चलते हैं। राहु और केतु सदैव वक्री होते हैं अर्थात् सदैव पीछे की ओर अर्थात् मीन, कुम्भ, मकर, इस क्रम से चलते हैं। अन्य ग्रह स्थिति अनुसार कभी आगे कभी पीछे चलते हैं अर्थात् वे मार्गी या वक्री दोनों हो सकते हैं। वास्तव में पीछे चलने जैसी घटना नहीं होती परन्तु पृथ्वी से वे इस प्रकार चलते हुए प्रतीत होते हैं।
ग्रह (Planets)
- राहु और केतु सपिंड ग्रह नहीं हैं। वे छाया ग्रह कहलाते हैं। दो बिन्दुओं पर, जहाँ चन्द्रमा अपने परिभ्रमण से सूर्य के क्रांतिवृत्त(पथ) को काटता है, उसके उत्तर वाला स्थान राहु और उसके १८० अंश सामने का स्थान केतु कहलाता है। राहु और केतु, यद्यपि अन्य ग्रहों की भांति भौतिक पिंड नहीं हैं, तथापि इनका पृथ्वी पर शक्तिशाली प्रभाव पड़ता है और इसलिए उनको नौ ग्रहों मं सम्मिलित किया गया है।
- उपर्युक्त ग्रहों में से राहु और केतु के अतिरिक्त सभी ग्रह सूर्य की परिक्रमा करते हैं। परिभ्रमण पश्चिम से पूरब की ओर होता है। चन्द्र पृथ्वी के सर्वाधिक निकट है तथा यह पृथ्वी की परिक्रमा करता है।
गोपाल
भचक्र और राशियां
- मेष (० से ३० अंश)
- वृष (३० से ६० अंश)
- मिथुन (६० से ९० अंश)
- कर्क (९० से १२० अंश)
- सिंह (१२० से १५० अंश)
- कन्या (१५० से १८० अंश)
- तुला (१८० से २१० अंश)
- वृश्चिक (२१० से २४० अंश)
- धनु (२४० से २७० अंश)
- मकर (२७० से ३०० अंश)
- कुम्भ (३०० से ३३० अंश)
- मीन (३३० से ३६० अंश)
- बारह राशियों में से छः सूर्य से संबंधित हैं तथा छः चन्द्र से संबंधित हैं ।
- सूर्य से संबंधित राशियाँ - सिंह (५), कन्या (६), तुला (७), वृश्चिक(८), धनु (९), मकर (१०)
- चंद्र से संबंधित राशियां - कर्क(४), मिथुन(३), वृष(२), मेष(१), मीन(१२), कुम्भ(११)
सोमवार, 19 मई 2008
भचक्र
रविवार, 18 मई 2008
ज्योतिष के स्कंध
सिद्धांत का सम्बन्ध खगोल शास्त्र से है। इसी में गणित ज्योतिष भी है। वराहमिहिर की पंचसिद्धान्तिका गणित ज्योतिष की प्रसिद्ध रचना है।
गोपाल
गुरुवार, 15 मई 2008
ज्योतिष विद्या
ज्योतिष वेद का एक अंग है । यह वेदों के छः अंगों में से एक अंग है । वेदों के छः अंग हैं - कल्प, शिक्षा, निरुक्त, व्याकरण, छंद और ज्योतिष । ज्योतिष को वेदों का नेत्र माना जाता है, क्योंकि यह न केवल भूत बल्कि भविष्य के बारे में भी संकेत देता है ।
ज्योतिष संबधी चर्चा जो मैंने शुरू की है वह जारी रहेगी.......
गोपाल