सोमवार, 19 मई 2008

भचक्र

सर्वविदित है कि पृथ्वी सूर्य की परिक्रमा करती है। भारतीय ज्योतिष में पृथ्वी को ही सम्पूर्ण ब्रह्माण्ड का केन्द्र माना गया है । इसलिए, सूर्य का काल्पनिक परिक्रमा पथ, जो वस्तुतः पृथ्वी का सूर्य की परिक्रमा का पथ है, क्रांतिवृत्त कहलाता है। इसी ३६० अंश के क्रांतिवृत्त के दोनों ओर ९-९ अंश विस्तार की कुल १८ अंश चौड़ी पट्टी है, जिसे भचक्र कहते हैं । इसी पट्टी में सभी ग्रह स्थित हैं । इस भचक्र को ३० अंश के द्वादश समान भागों में विभक्त किया गया है। प्रत्येक ३० अंश का भाग एक राशि कहलाता है, जिसका नामकरण उसमें स्थित प्रसिद्ध तारामंडल के आधार पर किया जाता है।
भचक्र अपनी धुरी पर दिन में एक बार पूर्व से पश्चिम की ओर घूम जाता है। ऐसा पृथ्वी की अपनी धुरी पर २४ घंटे में एक बार घूमने के कारण प्रतीत होता है।
गोपाल

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